Friday, 8 December 2017

एक निशानी मेरी जुवानी

वो मोहब्बत भी तेरी थी,
वो नफरत भी तेरी थी।
वो अपनापन और ठुकराने,
की अदा भी तेरी थी।
हम अपनी वफा का
इन्साफ किससे मांगते।
वो शहर भी तेरा था,
और अदालत भी तेरी ।।

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